हाथ पैर तोड़ने की धारा और सजा की जानकारी 2024

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हाथ पैर तोड़ने की धारा और सजा की जानकारी।

झगडे मे आपसे किसी के हाथ या पैर टूट जाये तो आपके ऊपर IPC की धारा 320धारा 322 और धारा 325  के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

हाथ पैर तोड़ने की धारा और सजा अपराध की परिस्थिति के आंकलन के बाद सुनाई जाती है।

इस ब्लॉग पोस्ट में हम समझेंगे कि यदि किसी के हाथ की हड्डी टूट जाती है  या फिर पैर की हड्डी टूट जाती है।  तो क्या कानूनी प्रतिक्रया होगी।

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सबसे पहले जब ये खबर पुलिस को लगेगी की किसी व्यक्ति हाथ या पैर की हड्डी टूटी है है। तो पुलिस सबसे पहले पीड़ित व्यक्ति से संपर्क करेगी या फिर पीड़ित व्यक्ति भी पुलिस को खबर कर सकता है।

पुलिस पीड़ित व्यक्ति से घटना की जानकारी लेगी और आगे की कार्यवाही शुरू करेगी। आमतौर पर यदि पीड़ित और आरोपी आपसी सहमति से बिना मुकदमा दायर किये बिना मान जाते है। फिर पुलिस राजीनामा लिखवाकर वही बात को ख़त्म कर देती है।

अक्सर देखा गया है हाथ पैर तोड़ने के मुक़दमे स्कूल और कॉलेज जाने वाले बच्चों के आते है। आवेश मे हुई लड़ाई के कारण बच्चों का भविष्य ख़राब ना हो इसलिए पुलिस की भी कोसिस रहती कि बात यही खत्म हो जाये।

लेकिन अगर बात यहीं खत्म नहीं होती हैं। पीड़ित और आरोपी की आपसे सहमति नहीं बन पाती है। तब ऐसी स्थिति मे पुलिस आगे की कार्यवाही शुरू करेगी। आगे की कार्यवाही मे आरोपी के ऊपर विभिन्न धाराओं में मुक़दमे दर्ज होंगे।

अब हम आगे ये जानेंगे की मुक़दमे में लगने वाली धाराएं और धाराओं से सम्बंधित अन्य जानकारियां।

हाथ पैर तोड़ने पर कौन सी धारा लगती है ?

यदि व्यक्ति के हाथ या पैर की हड्डी टूट जाती है तो आरोपी के ऊपर  IPC की धारा 320धारा 322 और धारा 325  के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।

धारा 320 (Section 320 of Indian Penal Code)

यह धारा विभिन्न प्रकार की चोटों को वर्गीकृत करती है, और किसी व्यक्ति के हाथ  पैर तोड़ना ” गंभीर चोट ( Grivous Hurt )” की परिभाषा के अंतर्गत आता है।

धारा 320  के सांतवे छंद के अनुसार ” यदि किसी व्यक्ति की हड्डी या दांत टूट जायें तो फिर उसे गंभीर चोट की श्रेणी में शामिल कर लिया जायेगा “। गंभीर चोट होने की वजह से आरोपी के ऊपर जो पहली धारा लगेगी वो है धारा 320 .

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धारा 322 (Section 322 of Indian Penal Code)

IPC Section 322 अनुसार यदि आरोपी किसी व्यक्ति को चोट पहुंचाता है।  चोट पहुँचाते हुए आरोपी को ज्ञात है कि चोट के परिणाम गंभीर हो सकते है।

परिणामस्वरूप न्यायालय ये मान लेगा कि आरोपी ने पीड़ित को स्वेच्छा से जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाई है।

आगे की कार्यवाही मे ये सुनिश्चित किया जायेगा कि आरोपी ने जो पीड़ित को चोट पहुंचाई है वो जानबूझकर पहुंचाई है। अगर इसका जवाब हाँ निकलता है तो फिर आरोपी को धारा 325 के अनुसार सजा मिलेगी।

धारा 325 (Section 325 of Indian Penal Code)

IPC Section 325 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को जानबूझकर स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाई है।  न्यायालय मे ये साबित हो जाता है कि आरोपी ने  गंभीर चोट पहुंचाई है। न्यायालय की कार्यवाही मे ये भी साबित हो जाता है की पीड़ित ने आरोपी को गुस्सा नहीं दिलवाया था।

दूसरे शब्दों मे कहें कि आरोपी को गुस्सा पीड़ित की किसी उकसावे वाली बात पर आया हो और न्यायालय को लगता है कि पीड़ित द्वारा कही गयी बात उकसावा नहीं है तो फिर न्यायलय आरोपी को धारा 335 के माध्यम से बचाव को भी रद्द कर देगा।

न्यायालय आरोपी को 7 साल की सजा सुना सकता है।  न्यायालय आरोपी के ऊपर जुर्माना भी लगा सकता है।

यह ध्यान रखना आवश्यक है कि प्रत्येक मामला अद्वितीय है, और अदालत फैसला देने से पहले विभिन्न कारकों पर विचार करती है, जैसे कि आरोपी का इरादा, नुकसान की मात्रा, किसी पिछले आपराधिक रिकॉर्ड की उपस्थिति, और किसी भी कम करने वाली परिस्थितियाँ।

निष्कर्ष :

शारीरिक झगड़े में उलझना कभी भी संघर्षों को सुलझाने का सही तरीका नहीं है। लड़ाई के दौरान किसी काहाथ पैर तोड़ने  न केवल गंभीर शारीरिक पीड़ा होती है, बल्कि भारतीय दंड संहिता के अनुसार गंभीर कानूनी परिणाम भी भुगतने पड़ते हैं।

संयम बरतना, शांतिपूर्ण समाधान को बढ़ावा देना और विवादों का सामना होने पर कानूनी सहारा लेना महत्वपूर्ण है। कानूनी निहितार्थों को समझना जिम्मेदारी से कार्य करने और कानून का सम्मान करने, सभी के लिए एक सुरक्षित और सामंजस्यपूर्ण समाज सुनिश्चित करने की याद दिलाता है। हाथ पैर तोड़ने